पेरेंटिंग टिप्स: खेल-खेल में पढ़ना सीखेगा आपका बच्चा, अपनाएं ये 5 आसान तरीके!
पहले घुटनों के बल चलना, फिर छोटे-छोटे कदमों से भागना, और फिर तुतलाते शब्दों में कुछ कहना! बच्चों के बड़े होने के मुकाम वाकई मां के लिए सुखद होते हैं। और फिर उन्हीं नन्हे कदमों से बच्चे का स्कूल की तरफ बढ़ना मां को रोमांचित भी करता होगा कि उसका लाडला कैसे धीरे-धीरे बड़ा हो गया। बचपन के ये दो-तीन साल खेल-खेल में कैसे बीत जाते हैं, पता ही नहीं चलता।
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फिर एक समय आता है, जब मां अपने बच्चों को प्ले स्कूल भेजने की तैयारी करने लगती है। वहां उस पर कई तरह के सोशल एटिकेट्स का वजन लाद दिया जाता है। प्ले स्कूल भले ही मस्ती की पाठशाला हो, मगर शुरुआती दिनों में बच्चे इस अनजाने माहौल में जल्दी नहीं घुल-मिल पाते। एक-दो सप्ताह तक वे स्कूल जाने में आनाकानी करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपका लाडला ऐसा न करें, तो उसे शुरू से ही इसके लिए मन से और शिक्षा से तैयार करना शुरू कर दें, ताकि बदले माहौल में वह खुद को अच्छी तरह स्थापित कर सके।
दें प्रेरक खिलौने
अमूमन ढाई से तीन साल तक का बच्चा सोचना और समझना शुरू कर देता है। यही नहीं वे आकार भी समझने लगते हैं। इसलिए उनको अल्फाबेट वाले खिलौने खेलने के लिए दें। इसमें बने शब्दों से उनको परिचित करवाएं। इस तरह सिखाने से बच्चे में एकाग्रता एवं सहभागिता का विकास होता है। स्वाभाविक तरीके से सिखाई गई ये चीजें उसके मन पर सीधा असर डालेंगी और बिना तनाव के वह खेल-खेल में शब्दों से भी खेलना सीख जाएगा।
रंगों से जोड़कर सिखाएं
बच्चे रंग-बिरंगी चीजों से शीघ्र प्रभावित होते हैं। लिहाजा इस उम्र के बच्चों को रंगों का ज्ञान करवाने के लिए उन्हें खूबसूरत आकार के रंग-बिरंगे खिलौने देने चाहिए। जैसे कि बच्चे को यदि हाथी की कलाकृति दिखाकर काले रंग की पहचान कराएं, तो वह अन्य सिखाए जाने वाले तरीकों से कहीं जल्दी सीखेगा।
कहानियों से भरें जीवन में रंग
घर में दादा-दादी जब बच्चों को शिक्षाप्रद कहानियां सुनाते हैं, तो वह उनके अवचेतन मन में चली जाती है। इससे उनमें जीतने का जज्बा, संघर्ष का एहसास, हार न मानना ऐसी कई बातें आ जाती हैं। समूह में रहना, मां-पिता तथा बुजुर्गों का सम्मान करना, ऐसी बातें भी वे अच्छी तरह समझने लगते हैं। यानी कहानियां बच्चों को भावनात्मक संबल देती हैं। इसलिए उनको छोटी-छोटी, लेकिन शिक्षाप्रद कहानियों से जोड़ने की कोशिश करें।
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प्यार से सिखाएं शेयर करना
स्कूल हो या घर, खेलने की बात हो या खाने की, सभी बच्चों में साथ बांटकर खेलने व खाने से आपसी सहयोग की भावना आती है। इस उम्र में इस बात का खास ख्याल रखना पड़ता है। घर से ही उनमें ये आदत डालिए कि वे चीज़ें बांटना सीखें। उनकी यही आदत स्कूल में अन्य बच्चों के साथ उन्हें टिफिन एवं खिलौने शेयर करना सिखाती है।
सिखाइए, सबसे प्यार करो
बच्चे गीली मिट्टी की भांति होते हैं। जिस ढांचे में आप उसे शुरू से ढालेंगे, वो वैसा ही रूप धरेगा। अत: उनको शुरू से ही हर जर्रे के प्यार से रूबरू कराएं। उसे यह सिखाना जरूरी है कि दुनिया में सबसे प्यार करो, तो सब तुम्हें प्यार ही देंगे । बड़ों का आदर करना सिखाइए और आप भी ऐसा करें, ताकि आपको देखकर वे अच्छी बातें सीखें। याद रखिए यदि नींव अच्छी होगी, तो ही भवन मजबूत रह सकेगा।
Image Courtesy: Pexels.
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बच्चे गीली मिट्टी की भांति होते हैं। जिस ढांचे में आप उसे शुरू से ढालेंगे, वो वैसा ही रूप धरेगा। yah baat dil ko chu gaya. thank you for good advice